कविता संग्रह >> दीप देहरी द्वार दीप देहरी द्वारलक्ष्मीकान्त वर्मा
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वर्मा जी की 100 कवितायें
अनुक्रम
१. प्रार्थना की कौन सी मुद्रा तुम्हें भाती है /
२. कब तक प्रर्थनायें करूँ ... /
३. मैं जाने कब से तुम्हें पुकार रहा हूँ /
४. तुमने कहा : मैं तुम्हारे अन्तरतम में हूँ /
५. “कहीं तुम्हारे मन में खाली जगह है /
६. मैं इतनी देर से /
७. मैं कितनी दूर से / ७
८. मैं इतनी देर से / ९
९. फूलों की हाट से गुज़र रहा था / १०
१०. मैं जानता हूँ तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो / ११
११. वाणी में मैं क्यों दीन होऊँ / १२
१२. तुम्हारे हाथ का दर्पण-बिम्ब ही तो हूँ मैं, / १३
१३. आँखों में वह ढीढ ज्योति कहाँ / १४
१४. इस हरीत्मा में, /१५
१५. जो सत्य है : वह तो रहस्यमय होगा ही / १७
१६. नेवैद्य का थाल सजा का सजा रह गया / १८
१७. मैं फूलों की घाटी में ठण्ड से ठिठुरता, / १९
१८. सना है ! जब तुम प्रसन्न होते हो / २०
१९. ये हरे भरे बिरवे, / २१
२०. जब भी समर्पण का समय आया / २२
२१. इस आकार हीन शून्य आकाश का / २३
२२. एक भूमिका लिखने की कोशिश में / २५
२३. एक बेतहाशा दौड़ में केवल ईहा ही दौड़ती है / २६
२४. जो तटस्थ होकर भी सबका कर्ता हो / २७
२५. तुम फिर चले आये मेरे पास?/ २८
२६. आज रात कुछ अजीब हुआ: / २९
२७. मैं कहाँ चलता हूँ ?/ ३०
२८. यह पूछना गुनाह है कि यह रास्ता कहाँ समाप्त होता है।। ३२
२९. यह कैसी यात्रा है ?/ ३३
३०. लोगो ने कहा / ३४
३१. जाने को तो मैं चला गया जोश में / ३५
३२. वह बैल गाड़ी के नीचे नीचे / ३७
३३. उस पेड़ से मेरा गहरा रिश्ता है | ३८
३४. दिशायें जब निर्वसन होती हैं | ३९
३५. जहाँ दिया जलता है / ४०
३६. किसी ने कहा - घटना घटित हो जाती है / ४१
३७. वह औरतों पर कविता लिखता था / ४२
३८. यदि तारों से, काँटों वाली झाड़ से / ४३
३९. वह बहुत दिन बाद मिला था / ४४
४०. राजा साहब नही रहे / ४५
४१. यदि शरीर का एक लय है / ४६
४२. जल का रूप क्या है- / ४७
४३. काँच के घरों में बैठे हुए काँच के लोग / ४८
४४. इस बड़े शहर में / ४९
४५. मेरा साखी वाला दोस्त अब नही रहा, / ५१
४६. आओ !आज मैं / ५२
४७. तुम्हारी मांग का सिंदूर / ५३
४८. आज जाने क्यों उस वट-वृक्ष के नीचे में ठहर गया।। ५४
४९. माँ। यह क्या किया तुमने?/५५
५०. वृक्ष ही साथी होता है हमारे अच्छे बुरे का / ५६
५१. एक समय आता है जब सब कुछ पाराया, / ५७
५२. कैसा लगता है अपने ही हाथ से / ५९
५३. मुझे नहीं मालूम था / ६०
५४. वह जगन्नाथिन आज फिर आई है, / ५४
५५. उस अंधेरी रात में / ६२
५६. यही तो है वह स्थल / ६३
५७. महाभारत युद्ध के बीच / ६४
५८. उसे कोई नही उखाड़ सकता / ६५
५९. धरती गाती है /६६
६०. तुम्हारे महा-नृत्य में मैं ढूँढता रहा / ६८
६१. अंकुरित बीज के अखुये ने शीश उठाया /६९
६२. कितना और सीझेगी यह मिट्टी?/७०
६३. अचल भी थिरक उठे / ७२
६४. तुम्हारी इस कोलाहल भरी सृष्टि को / ७३
६५. बहुत किया तुम ने जो तूफान में टूटे नहीं, / ७४
६६. मत बजाओ यह मृण-पात्र / ७६
६७. वह दो अगर बत्तियों / ७७
६८. जिजीवषायें अनन्त होती हैं, / ७८
६९. बया घोंसला बनाती है, / ७९
७०. मैं ने अपनी मुट्ठी में / ८१
७१. अब उम्र हो गई है। ८२
७२. बच्चे स्कूल से आते है। ८३
७३. किसी ने कहा : “बच्चे भविष्य के नागरिक हैं ” / ८४
७४. गुड़िया के घरौन्दे में आज उदासी थी / ८५
७५. सुनहले बालों वाली गड़िया अजीब है,। ८७
७६. धूप की आदत है, / ८८
७७. मैं जब भी उस पुरानी बस्ती से गुज़रता हूँ / ८९
७८. आज भी वह सिंसुपा वृक्ष वहीं खड़ा है / ९०
७९. तुम्हें वहाँ क्या मिला कैकेयी-नंदन, / ९२
८०. नदी में तैरता एक खिला अधखिला कमल / ९३
८१. एक ही तो हैं दोनों- एक कृत्रिम आवरण में ढंके हुए / ९४
८२. किसी ने उसे देख नहीं।। ९५
८३. वह जब भी कैम्पस में इधर उधर जाती थी / ९६
८४. रोशनी कभी भी एक सैलाब सी नहीं आती / ९७
८५. मर्यादा भी अनुबंधित होती है, / ९८
८६. तुम्हारे आजानु बाहु होने में संदेह नहीं मुझे, / १००
८७. मै तो निकल जाता इस पारावार के पार / १०१
८८. इस काले वृत्त के बाहर प्रकाश है / १०२
८९. मछलियाँ शुभ हैं, क्योंकि वह आँखों की प्यास बुझने नहीं देतीं / १०४
९०. तुमने वंशी राधा को दे / १०५
९१. देखो तो बिना किसी सम्बन्ध के, रिशते के / १०७
९२. सुना है व्योम में तुम्हारा आवास है, / १०८
९३. मिट्टी की साध है। मिट्टी में मिल जाना; / १०९
९४. पत्थर की धीरज की बात सब करते है, / ११०
९५. महोदधि के इस पार तुम तापसी कन्या-कुमारी / १११
९६. वह जो अकारण न हो, इसलिए / ११३
९७. मैं इस सागर के तट पर खड़ा / ११४
९८. बरसों पहले जब मैं / ११५
९९. आखिर वह लता जिसे मैंने बड़े मनोयोग से बड़ी की था /११७
१००. इस सघन वन में चलते चलते मैं रूक गया हूँ, / ११८
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